
भारतीय मूल के CEO अरविंद श्रीनिवास का गूगल क्रोम खरीदने का 34.5 अरब डॉलर का चौंकाने वाला प्रस्ताव — एआई और टेक दिग्गजों की जंग तेज
भारतीय मूल के सीईओ अरविंद श्रीनिवास की कंपनी पर्प्लेक्सिटी एआई ने गूगल क्रोम को खरीदने के लिए 34.5 अरब डॉलर की ऑल-कैश डील का प्रस्ताव रखा। जानें क्यों 3 अरब यूज़र्स वाला ब्राउज़र उनके लिए इतना अहम है और कैसे अमेरिकी एंटीट्रस्ट दबाव इस डील को संभव बना सकता है।
सिलिकॉन वैली को हिला देने वाला ऑफर
सैन फ्रांसिस्को स्थित एआई सर्च इंजन स्टार्टअप पर्प्लेक्सिटी एआई (Perplexity AI) के भारतीय मूल के सीईओ अरविंद श्रीनिवास ने दुनिया को चौंकाते हुए गूगल क्रोम को खरीदने के लिए 34.5 अरब डॉलर (₹3,02,152 करोड़) का ऑल-कैश ऑफर दे दिया है।
यह ऑफर पर्प्लेक्सिटी की अपनी वैल्यूएशन ($14–18 अरब) से दोगुना है और साफ संकेत देता है कि कंपनी ओपनएआई, मेटा और गूगल जैसे दिग्गजों को जनरेटिव एआई की दौड़ में सीधी चुनौती देने के लिए तैयार है। क्रोम के 3 अरब से ज्यादा यूज़र्स हैं, जो इसे दुनिया की सबसे कीमती डिजिटल संपत्तियों में से एक बनाते हैं।
क्यों क्रोम और क्यों अभी?
यह ऑफर उस समय आया है जब गूगल पर अमेरिका में एंटीट्रस्ट दबाव बढ़ रहा है। एक ऐतिहासिक फैसले में अमेरिकी जिला न्यायालय ने पाया कि गूगल ने सर्च मार्केट में अपनी पकड़ गैर-कानूनी तरीके से बनाए रखी, जिसमें डिवाइस और ब्राउज़र पर डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन बने रहने के लिए अरबों डॉलर का भुगतान भी शामिल है।
अमेरिकी न्याय विभाग (DOJ) की सिफारिशों में से एक यह है कि गूगल को क्रोम को बेचने के लिए मजबूर किया जाए — जिसे गूगल ने “बेहद अतार्किक” बताते हुए चुनौती दी है। यह कानूनी प्रक्रिया सालों चल सकती है और सुप्रीम कोर्ट तक जा सकती है।
पर्प्लेक्सिटी का ऑफर — मुख्य बिंदु
अगर यह डील होती है तो पर्प्लेक्सिटी ने वादा किया है कि वह:
- क्रोम के क्रोमियम कोड को ओपन-सोर्स रखेगा
- दो साल में $3 अरब का निवेश ब्राउज़र डेवलपमेंट में करेगा
- क्रोम का डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन गूगल ही रहेगा
- यूज़र्स की पसंद बरकरार रखेगा और प्रतिस्पर्धा से जुड़ी चिंताओं को कम करेगा
कंपनी का दावा है कि कई बड़े फंड ने इस डील को पूरी तरह फाइनेंस करने में रुचि दिखाई है, हालांकि नामों का खुलासा नहीं किया गया है।
अरविंद श्रीनिवास कौन हैं?
चेन्नई में जन्मे अरविंद श्रीनिवास आईआईटी मद्रास के पूर्व छात्र हैं और उन्होंने आगे की पढ़ाई यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले से की। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत गूगल में की और एआई के अग्रणी शोधकर्ता योशुआ बेंगियो के साथ भी काम किया।
2022 में, उन्होंने डेनिस यारात्स, जॉनी हो और एंडी कोनविंस्की के साथ मिलकर पर्प्लेक्सिटी एआई की स्थापना की — एक एआई-पावर्ड कन्वर्सेशनल सर्च इंजन, जो रियल-टाइम में संदर्भित जवाब देता है। उनके नेतृत्व में कंपनी ने:
- एनवीडिया और सॉफ्टबैंक जैसे निवेशकों से लगभग $1 अरब जुटाए
- भारती एयरटेल के साथ साझेदारी की, जिससे 36 करोड़ भारतीय यूज़र्स को पर्प्लेक्सिटी प्रो का मुफ्त एक्सेस मिला
- अपना खुद का एआई ब्राउज़र कॉमेट (Comet) लॉन्च किया
क्रोम क्यों है रणनीतिक खजाना
क्रोम सिर्फ एक ब्राउज़र नहीं है — यह गूगल के सर्च, विज्ञापन और क्लाउड इकोसिस्टम का गेटवे है। इसका अधिग्रहण पर्प्लेक्सिटी को तुरंत ही विशाल यूज़र बेस और सर्च ट्रैफिक तक पहुंच देगा, जिससे वह ओपनएआई, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा के मुकाबले अपनी स्थिति मजबूत कर सकेगा।
डकडकगो के सीईओ का अनुमान है कि क्रोम की जबरन बिक्री की कीमत कम से कम $50 अरब हो सकती है। ऐसे में पर्प्लेक्सिटी का $34.5 अरब का ऑफर आक्रामक है, लेकिन फिर भी इस अनुमान से कम है — जो अन्य टेक कंपनियों के लिए मौका बन सकता है।
उद्योग की शंका
विशेषज्ञों को शक है कि गूगल स्वेच्छा से क्रोम बेचेगा, क्योंकि यह उसकी एआई सर्च स्ट्रैटेजी का अहम हिस्सा है — खासकर एआई-जनरेटेड सर्च समरी (“Overviews”) फीचर के लॉन्च के बाद।
फिर भी, यह ऑफर दिखाता है कि एआई स्टार्टअप्स अब सिर्फ टेक्नोलॉजी में नहीं, बल्कि मार्केट ओनरशिप में भी दिग्गजों को चुनौती देने को तैयार हैं।
बड़ी तस्वीर
यह पर्प्लेक्सिटी का पहला साहसी कदम नहीं है — 2025 की शुरुआत में कंपनी ने टिक टॉक के अमेरिकी ऑपरेशंस के साथ मर्जर पर भी विचार किया था। वह डील भले ही रुक गई हो, लेकिन क्रोम ऑफर ने इसे वैश्विक टेक परिदृश्य में एक निडर खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर दिया है।
अगर यह डील सफल होती है, तो यह ब्राउज़र मार्केट को नया आकार दे सकती है और एआई-चालित इंटरनेट युग को फिर से परिभाषित कर सकती है। अगर नहीं, तो भी यह दिखा देगी कि पर्प्लेक्सिटी का लक्ष्य अपनी मौजूदा सीमाओं से कहीं आगे है।
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